पींजर चोले से
मेरे सपनो की सोनचिरैया उड़ जा होले से
अनमनी हठीली जुडी रहे मत पींजर चोले से
लटका सलीब पर प्यार पुरुष, क्षण चटके दर्पण के
अब कहाँ थिरकते शिथिल चरण, तट वंशी किंकिण के
डसते करील-वन-सर्प-सेतु-मग दहके शोले से
झुकती गोधूली गिर्द ह्रदय के, विषपायी पर्तें
अब कहाँ रहीं सीने में छुटपुट, इच्छाएं शर्तें
ढह गए घरौंदे सतमहले तन-मन हिचकोले से
टिटियातीं डार-पात-वन-वाड़ी, झुरमुट टिटहरियाँ
अब कहाँ इन्द्रधनुषी सम्मोहन, हंसती किन्नरियाँ
टूटे डैने लाचार गरुड़, नतपंख हिंडोले से.
पावस गीत
सावन के घन घिरे
साँझ झुक आई
प्राण धन अब लौं नहीं फिरे
पुरवाई के झोंके न्यारे, वातायन के खुले किवारे
भींग गए रेशम-पट सारे, चोली-बंद हिले बजमारे
केश-जाल बिखरे
कजरा नैन तिरे
छाये कैसे सपने रस के, बिजुरी कौंधे आँचल डस के
पापी क्षण ये कितने कसके, तन-मन नहीं रहे अब बस के
फिरकी से फिरके
रूप ताल निखरे
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