जादूगरनी रूपनगर की छीनी तुमने नींद हमारी.
कैसे मंत्र उचारे तुमने बेचैनी बढ़ गयी हमारी.
तुमने जाने कहाँ कहाँ तक
वशीकरण के जाल बिछाए
नज़र उठाकर देखा जिनको
वो सब हुए तुम्हारे साए
सम्मोहन की तुम सौदामिनि
सुध-बुध खोये दुनिया सारी.
अधरों पर मुस्कान तिरे तो
खुले सीप में मोती दमके
लहराते कुंतल मेघों में
मुखड़ा जैसे बिजुरी चमके
लोचन म्रगनयनी से विह्वल
मोहपाश में फंसे शिकारी.
भ्रकुटि उठे तो ता ता थैया
नृत्य कर उठें आशंकाएं
पलक पांवड़े बिछा खड़ी हैं
भौतिक जग की सुख सुविधाएं
शिखर शिला से गहरे तल तक
कीर्ति पताका उड़े तुम्हारी.
डॉ. राजेंद्र मिलन
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