1.
कोई तिलिस्मी जाल में बेचैन हो पल पल गुज़ारे.
इस तरह से आपके लन्दन में बीते दिन हमारे.
मौज थी मस्ती निरा सम्मान नयनाभिराम छवि थी.
फिर न जाने क्यूँ चुभे थे टेम्स के धुंधले किनारे.
नहीं थी आतिथ्य में कुछ कमी या रही थी दूरियां
पर हमें तो रास आए ही नहीं रंगी नज़ारे.
सच कहें तो हम तुम्हारे नेह के बल खिंचे आये
वरना होता सीकरी में काम क्या संतों को प्यारे.
याद रखना 'मिलन' की फितरत नहीं एहसान रखना
पर तुम्हारे क़र्ज़ को लाचार मन कैसे उतारे.
2.
रहेंगे डायरी में कैद अपनी याद के हिस्से
कि दोनों हम 'अकेलों' ने जिये जज़्बात के रिश्ते.
रहेंगे बंद भवनों में तो कुंठित लोग होंगे ही
भला सोचो ज़रा मित्रों कहें क्या कैसे किस-किस से.
शिकायत आपको हमसे, हमें भी आपसे होगी
लाख बेहतर यही की हम कहें इससे नहीं उससे.
बने विश्वास के संबल लिखे जो पत्र दोनों ने
थे बेबुनियाद लन्दन में हमारे-आपके किस्से.
'मिलन' को आपका लन्दन लगा तो खूब सुन्दरतम
मगर रमते फकीरों को लुभा सकते न गुलदस्ते.
Dr. Rajendra Milan.
No comments:
Post a Comment