धारयित्री माँ की वंदना
तेरी धड़कन में लहराए सागर ह्रदय
तेरे माथे से हों चाँद-सूरज उदय
तेरे चेहरे को चूमे गगन झूमकर
तेरे नयनों में झिलमिल झमाझम प्रणय
तेरा आँचल जो मंडराए बरसात हो
तेरे कुंतल जो बिखरें गहन रात हो
तेरे अधरों पर खिलते कमल ही कमल
महके गुलमेंहदी, बेला, अमलतास हो
तेरी साँसों को छूकर के पागल प्रलय
संदली वन- सा झूमे दमादम मलय
तेरा वात्सल्य गंगा-यमुना में बहे
तेरी करुणा की गाथा समीरण कहे
नभ को स्पर्श करता हिमालय प्रबल
आपदाओं को देता चुनौती रहे
देव किन्नर यती देख तेरा निलय
रात-दिन तरसें, पाने चमाचम वलय
तेरे काँधे पे झुकतीं धवल बदलियाँ
तेरी बाहों में झूलें चपल बिजलियाँ
तेरे चरणों में थिरके भरत नाट्यम
रूप जैसे तमाम उड़ रही तितलियाँ
तेरी भौंहें उठें श्राप का हो प्रमय
चौकड़ी भरता ठिठके छमाछम समय
तेरे तन पर सुघर ये नमित वादियाँ
सतपुड़ा-विंध्याचल की हरित झाँकियाँ
मरुस्थलों का अजब-सा सघन सिलसिला
नदियाँ रानी लगें, झील शहजादियाँ
तेरे कण-कण की आभा सुरभि में विलय
तेरी ममता का दर्पण गमागम सदय
- डॉ. राजेंद्र मिलन
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